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बीए सेमेस्टर-2 - हिन्दी - कार्यालयी हिन्दी एवं कम्प्यूटर

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2719
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-2 - हिन्दी - कार्यालयी हिन्दी एवं कम्प्यूटर

अध्याय - 3
संक्षेपण

शाब्दिक अर्थ - 'संक्षेपण' शब्द अंग्रेजी शब्द 'प्रेसी' के लिए प्रयोग किया जाता है। संक्षेपण के अतिरिक्त इसके लिए संक्षेपीकरण, संक्षिप्तीकरण, सार-लेखन, संक्षिप्त रूप, संक्षिप्त लेखन, सार लेख आदि शब्द भी प्रचलन में हैं।

'संक्षेप' शब्द संस्कृत के 'सम्' उपसर्गपूर्वक 'क्षिप्' धातु से मिलकर बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ है-ठीक प्रकार क्षेपण करना या फेंकना अर्थात् अपने विस्तृत भाव को कम शब्दों में इस प्रकार रखना कि मूलभाव ज्यों-का-त्यों सुरक्षित बना रहे ।

परिभाषा - "किसी विस्तृत लेख, आख्यान, विवरण-पत्र, सूचना आदि तथ्य / तथ्यों को सरल सुबोध भाषा में इस प्रकार प्रस्तुत करना कि मूल पत्र/अवतरण की सभी तथ्यात्मक बातें उसके तृतीयांश में समाहित हो जाएँ, संक्षेपण कहलाता है। '

स्वरूप – कार्यालयी प्रयोग में लिखित तौर पर प्रयुक्त होने वाला संक्षेपण एक कला है। इसमें असम्बद्ध तथा अनावश्यक बातों तथ्यों को निकाल दिया जाता है। इसके लिए व्यास शैली के स्थान पर समास शैली ज्यादा उपयुक्त समझी जाती है। संक्षेपण में ऐसा प्रतीत नहीं होना चाहिए कि वह किसी अन्य रचना का संक्षिप्त रूप है। संक्षेपण में लेखक की दृष्टि मूल अंश के समस्त महत्त्वपूर्ण तथ्यों को ठोस रूप में प्रस्तुत करने की होनी चाहिए। इसमें लेखक तथ्यों को व्यवस्थित तथा संक्षिप्त रूप में प्रकट करता है। संक्षेपण में हृदय पक्ष की अपेक्षा बुद्धि पक्ष की प्रधानता रहती है।

संक्षेपण की पद्धति

1. मूलपाठ का सावधानीपूर्वक वाचन - सर्वप्रथम जिस अवतरण का संक्षेपण करना है, उसको सावधानीपूर्वक पढ़ना चाहिए; क्योंकि जब तक मूलपाठ का पर्याप्त ज्ञान नहीं होता, तब तक उसका संक्षेपण नहीं किया जा सकता। हो सकता है कि प्रथम वाचन में मूलभाव ग्रहण न किया जा सकें; अतः जब तक अवतरण से सम्बन्धित मूल अवधारणा मन में भली प्रकार स्पष्ट न हो जाए, अवतरण का निरन्तर पाठ आवश्यक है। अगर अवतरण पर्याप्त लम्बा है तो शीघ्र पठन का अभ्यास होना चाहिए।

2. उचित शीर्षक का चुनाव - उचित शीर्षक का चुनाव करने से मूलभाव को हृदयंगम करने में सहायता मिलती है। कार्यालय सम्बन्धी पत्राचार में पत्र के प्रारम्भ में ही विषय का उल्लेख कर दिया जाता है, जिससे पत्र पढ़ने में आसानी होती है। शीर्षक का चुनाव करते समय दो-तीन शीर्षक भी उभरकर सामने आते हैं। ऐसी स्थिति में यह देखना जरूरी है कि कौन-सा मूलभाव आद्योपान्त है। सार- लेख तैयार कर लेने के बाद ही अवतरण के मूलभाव की स्पष्ट अवधारणा हमारे मन में अंकित हो पाती है और तब ही उपयुक्त शीर्षक का चुनाव सम्भव है।

3. मुख्य अंशों का रेखांकन – अवतरण पढ़ते समय आवश्यक अंशों को रेखांकित किया जा सकता है। रेखांकित अंशों को अन्यत्र क्रम से लिख लेने के पश्चात् संक्षेपण में आसानी रहती है। रेखांकन के समय इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि कोई महत्त्वपूर्ण बात- छूट न जाए और अनावश्यक बात जुड़ न पाए ।

4. पुनः वाचन - संक्षेपण तैयार हो जाने के बाद मूलपाठ को फिर से पढ़ लेना उचित रहता है। इससे संक्षेपण में रह गई गलतियों को सुधारा जा सकता है।

5. संक्षेपण का आकार - संक्षेपण करने के लिए कहीं-कहीं निश्चित शब्द संख्या ही नहीं दी जाती, वरन् उसके लिए निश्चित खाने भी बना दिए जाते हैं। सामान्यतः संक्षेपण मूलपाठ का तृतीयांश होता है, फिर भी दी हुई निश्चित शब्द संख्या का पालन करना उचित होता है।

स्मरण रखने योग्य महत्त्वपूर्ण तथ्य

1. संक्षेपण के प्रथम वाक्य को प्रस्तावना के रूप में इस प्रकार रखना चाहिए कि सम्बद्धअधिकारी या व्यक्ति को मूल सन्दर्भ के विषय की जानकारी प्रथम वाक्य से हो जाए।

2. संक्षेपण में लेखक को अपनी ओर से टीका-टिप्पणी अथवा आलोचना आदि करने का कोई अधिकार नहीं रहता; अतः लेखक को अपने विचार आदि नहीं जोड़ने चाहिए।

3. संक्षेपण करते समय सर्वप्रथम मूल अंश अथवा पत्रादि को अनेक बार ध्यानपूर्वक पढ़कर उसके भाव तथा विचारों को स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए। उसके मूल-भाव को भली प्रकार समझकर ही संक्षेपण का प्रारम्भ करना चाहिए ।

4. पत्र अथवा अतवरण के महत्त्वपूर्ण कथ्यों एवं विचारों को क्रमबद्ध करके लिख लेना चाहिए, ताकि उन महत्त्वपूर्ण तथ्यों का उल्लेख करते समय कोई बिन्दु छूट न जाए।

5. संक्षेपण करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि अवतरण के संक्षिप्त रूप को सभी कथ्यों के साथ प्रस्तुत करने की पूर्ण जिम्मेदारी संक्षेपक की है; क्योंकि अधिकारी मूल अंश को नहीं पढ़ता, अपितुं संक्षेपण को पढ़कर ही उसके कथ्य को समझकर उस पर उचित कार्रवाई करता है।

6. संक्षेपण सदैव अन्य पुरुष में ही किया जाता है तथा क्रियाओं आदि के रूप भी उसी के अनुसार बदल लिये जाते हैं।

7. संक्षेपण करने वाले व्यक्ति को अपनी ओर से कुछ भी कहने या जोड़ने का अधिकार नहीं होता। किसी पत्र आदि का संक्षेपण करते समय उसे अपनी ओर से सिफारिश करते हुए कोई वाक्य आदि नहीं जोड़ना चाहिए और न ही कोई तर्क-वितर्क करना चाहिए। जो भी मूल कथ्य में है, वहीं संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत करना चाहिए ।

8. संक्षेपण करने के बाद संक्षेप को मूल अंश तथा संक्षिप्त रूप दोनों को एक बार अवश्य पढ़ना चाहिए, जिससे उन महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं को पुन: चेक किया जा सके और किसी बिन्दु के छूटने पर उसे उसमें जोड़ा जा सके। पूर्णतया आश्वस्त होने पर ही संक्षेपण को अन्तिम रूप देना चाहिए।

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    अनुक्रम

  1. अध्याय - 1 कार्यालयी हिन्दी का स्वरूप, उद्देश्य एवं क्षेत्र
  2. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  3. उत्तरमाला
  4. अध्याय - 2 कार्यालयी हिन्दी में प्रयुक्त पारिभाषिक शब्दावली
  5. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  6. उत्तरमाला
  7. अध्याय - 3 संक्षेपण
  8. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  9. उत्तरमाला
  10. अध्याय - 4 पल्लवन
  11. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  12. उत्तरमाला
  13. अध्याय - 5 प्रारूपण
  14. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  15. उत्तरमाला
  16. अध्याय - 6 टिप्पण
  17. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  18. उत्तरमाला
  19. अध्याय - 7 कार्यालयी हिन्दी पत्राचार
  20. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  21. उत्तरमाला
  22. अध्याय - 8 हिन्दी भाषा और संगणक (कम्प्यूटर)
  23. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  24. उत्तरमाला
  25. अध्याय - 9 संगणक में हिन्दी का ई-लेखन
  26. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  27. उत्तरमाला
  28. अध्याय - 10 हिन्दी और सूचना प्रौद्योगिकी
  29. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  30. उत्तरमाला
  31. अध्याय - 11 भाषा प्रौद्योगिकी और हिन्दी
  32. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  33. उत्तरमाला

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